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نہ تھا کچھ تو خدا تھا ، کچھ نہ ہوتا تو خدا ہوتا
ڈوبویامجھ کو ہونے نے ، نہ میں ہوتا تو کیا ہوتا
ہوا جب غم سے یوں بے حص ،تو غم کیا سر کے کٹنے کا۔
نہ ہوتا گر جدا تن سے تو ذانو پر دھرا ہوتا
ہوئی مدّت کے غالب مر گیا، پر یاد آتا ہے
وہ ہر اک بات پر کہنا کہ یوں ہوتا تو کیا ہوتا۔
ना था कुछ तो खुदा था, कुछ ना होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने ना मै होता तो क्या होता !
हुआ जब गम से बेहिस तो गम क्या सर से कटने का,
ना होता गर जुदा तन से तो ज़ानु पर धरा होता !
हुई मुद्दत की ‘गालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना यूं होता तो क्या होता !
ye na thi hamari qismat ke visale yar hota ,
agar aur jite rahate yahi intezar hota
mirza ghalib
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